बुराई में भी कोई अच्छाई छिपी होती है

डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल

लेखक समसामयिक विषयों के विशेषज्ञ है

पता: ई-2-211, चित्रकूट, जयपुर

सुना तो था कि हर बुराई में भी कोई अच्छाई छिपी होती है, लेकिन इस सुने पर कभी विश्वास नहीं हुआ। लेकिन हाल में इस बात पर विश्वास भी हो गया। अपने दो दोस्तों की बेटियों की शादी का हमें काफी दिनों से इंतजार था। एक शादी की तो औपचारिक  अग्रिम मनुहार भी आ गई थी और हम लोग आरक्षण वगैरह करवाने के बारे में सोच ही रहे थे कि कोरोना की आहटें सुनाई देने लगीं। दूसरी शादी की औपचारिक सूचना भले ही नहीं मिली थी लेकिन यह बात जानकारी में थी कि उसके लिए दिसम्बर की कोई तारीख तै हो गई है। ये दोनों ही शादियां बहुत नजदीकी दोस्तों की बेटियों की थीं इसलिए हम इनमें सम्मिलित होकर वर-वधू को आशीष देने के लिए लालायित थे। दोनों ही मित्र जीवन में सुस्थापित हैं इसलिए वर्तमान चलन के अनुरूप इन शादियों का भव्य होना असंदिग्ध था। हमारे यहां शादियों की भव्यता का अर्थ होता है उनमें बहुत सारे मेहमानों का सम्मिलित होना, आवास की सुविधापूर्ण व्यवस्था, लम्बा चैड़ा मेन्यू और आपकी सुख सुविधा का खयाल रखने के तमाम इंतजामात। आजकल सब कुछ व्यावसायिक रूप से होने लगा है इसलिए जिनके लिए इनका खर्च वहन करना सम्भव होता है वे इस तरह की अधिकतम सुविधाएं जुटा कर अपने अतिथिगण को प्रसन्न करने का सुख प्राप्त करते हैं। सुविधाएं असीमित हैं और जब आप किसी शादी में जाकर वहां की सुविधाओं को देखकर  चमत्कृत होकर सोचते हैं कि इससे ज्यादा और क्या हो सकता है तभी कोई और शादी आपको इस सवाल का जवाब भी दे देती है कि इससे ज्यादा यह हो सकता है! शादियों की भव्यता दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। हम नए-नए शब्द सुनते हैं, जैसे डेस्टिनेशनवेडिंग, थीमवेडिंग वगैरह। मेहमानों के आवास के लिए पंच सितारा सुविधाएं जुटाई जाती हैं तो उन्हें लाने-ले जाने के लिए विण्टेज कारों की व्यवस्था की जाती है। भोजन की तो पूछिये ही मत। व्यंजनों की गिनती भी करना सम्भव नहीं होता है। दुर्लभ और दूरस्थ इलाकों, शहरों और देशों के व्यंजन परोसने की जैसे होड़ रहती है। जिनके लिए सम्भव है वे अपने यहां होने वाली शादी की शान बढ़ाने के लिए फिल्मी सितारों को भी मोटी रकम देकर बुलाते हैं। हमारे संचार माध्यम जब लहालोट होते हुए ऐसी फैटइण्डियनवेडिंग्स का विस्तृत, रसीला और ललचाने वाला विवरण देते हैं तो आश्चर्य होता है, और हां, क्षोभ भी। 

इस हंसी-खुशी की बात में क्षोभ कहां से आ गया ? बताता हूं। हमारे समाज की बनावट कुछ ऐसी है कि हम ऊपर की तरफ देखते हैं और जैसा वे करते हैं वैसा ही हम भी करना चाहते हैं। महाभारतकार ने अपने महाग्रंथ में यक्ष के प्रश्न के उत्तर में युधिष्ठिर से भले हीमहाजनोयेनगतः स पन्थाः किसी अन्य संदर्भ में कहलाया हो, आम भारतीय इसे इस रूप में ग्रहण करता है कि जैसा बड़े लोग करें वैसा ही हमें भी करना चाहिए. इसका परिणाम यह होता है कि आम भारतीय अपनी क्षमता से बाहर जाकर शादियों में खर्च करता है. और यह क्षमता से बाहर जाना कभी कर्ज के रूप में तो कभी रिश्वत या  अन्य  किसी भ्रष्ट आचरण के रूप में  प्रकट होता है. बहुत सारे लोग अनौपचारिक संवाद में अपने भ्रष्ट आचरण को इसी बिना पर उचित ठहराते हैं कि उन्हें बच्चों की शादियां करनी हैं. शादियों की यह अतिशय भव्यता और बहुत सारे सामाजिक विकारों को भी बढ़ावा देती है. दहेज, दहेज के लिए उत्पीड़न, वैवाहिक हिंसा, ये तमाम बुराइयां इसी भव्यता और फिजूल खर्ची से जुड़ती हैं। 

विवाहों में वैभव के प्रदर्शन का यह सिलसिला इतनी तेजी से जारी था कि इसके थमने की दूर-दूर तक कोई उम्मीद नहीं थी। लेकिन तभी कोरोना ने आकर वह कर दिया जो हमारे लिए कल्पनातीत था। जैसे सब कुछ थम-सा गया। जिंदगी की बहुत तेज भागती गाड़ी के चक्के एकदम जाम हो गए। काफी समय तक तो जैसे हम हतप्रभ थे। कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था। यह भी कि शुरु-शुरु में तो इसे लेकर हम बहुत गम्भीर भी नहीं थे। सोचा एक वायरस भटकता हुआ जैसे आया है वैसे ही चला भी जाएगा। लेकिन वह गया नहीं और तब हमें नए सिरे से सब कुछ सोचना पड़ा. अपने जिन मित्रों की बेटियों के विवाह की चर्चा से मैंने यह बात शुरु की, उनके साथ भी ऐसा ही हुआ। कुछ दिन प्रतीक्षा की उन्होंने, और फिर बहुत सोच विचार कर नई तरह से विवाह सम्पन्न करने का कदम उठाया। उनके द्वारा उठाया गया यह कदम ही बुराई में से निकली हुई अच्छाई है! एक मित्र ने अपने परिवार के मात्र पांच  सदस्यों के साथ जाकर सानंद विवाह सम्पन्न कर दिया और हम नजदीकी लोग तकनीक के माध्यम से इस विवाह के साक्षी बन गए, तो दूसरे मित्र ने यह तै कर लिया है कि वे आठ दस लोग जाकर एक गुरुद्वारे में आनंद कारज (सिख रीति रिवाज से विवाह) सम्पन्न कर देंगे। ये दोनों ही विवाह इस बात के सूचक हैं कि बिना धूम धड़ाके के, बिना वैभव प्रदर्शन के, बिना भारी भीड़ के भी विवाह सम्पन्न हो सकता है, और अधिक बेहतर तरीके से हो सकता है। अधिक बेहतर तरीके वाली बात इसलिए कह रहा हूं कि विवाह मुख्यतः एक पारिवारिक प्रसंग है और इसका असल आनंद तभी है जब परिवार जन इसमें उन्मुक्त सहभागिता करें। उन पर कोई तनाव, कोई दबाव, कोई बोझ न हो। लेकिन हमने, हमारी महत्वाकांक्षाओं ने इस विशुद्ध पारिवारिक प्रसंग को अपनी अमीरी के प्रदर्शन का, अपनी सामाजिक हैसियत के प्रदर्शन का माध्यम बना कर इससे इसकी सारी सहजता और पवित्रता छीन ली। आज होता यह है कि विवाह समारोहों में ऐसे लोगों की भीड़ होती है जिनसे आपके कोई पारिवारिक रिश्ते नहीं होते हैं, लेकिन व्यावसायिक, राजनीतिक या ऐसे ही किसी कारण से आप उन्हें बुलाते हैं और वे आते हैं। आज के हमारे विवाह पारिवारिक आयोजन न रहकर पीआरईवेण्ट में तब्दील होकर रह गए हैं। आप विवाह आयोजित करते हैं और दुनिया को बताते हैं कि देखो हम इतने समर्थ, इतने शक्तिशाली और इतने सम्पर्कवान हैं. जैसे यह दिखाने के लिए ही सब कुछ किया जाता है. 

एक और मजेदार बात यह है कि हमारे विवाह आयोजनों के स्वरूपमें जो बदलाव आया है उसमें विवाह तो नेपथ्य में चला गया है. अब सारा ध्यान उम्दा खान-पान और श्लिफाफा देनेश् पर केंद्रित हो गया है। जिसे आप बुलाते हैं और जो आपके यहां आता है उसकी कोई रुचि विवाह के असल अनुष्ठान में नहीं होती है। यहां तक कि खुद वर-वधू की भी उसमें बहुत कम रुचि होती है। जब इनके दोस्त पण्डित जी का उपहास करते हैं और उनसे आग्रह करते हैं कि वे यह सारा कर्मकाण्ड जल्दी जल्दी निबटा दें तो उस आग्रह में वर वधू भी शामिल होते हैं। उनके मां बाप तो खैर शायद ही वहां होते हों। ऐसे में कोरोना के कारण आया यह बदलाव उम्मीद की एक किरण चमकाता है। इसमें एक संदेश भी है हम सबके लिए कि हमें अपनी दिखावटी जीवन शैली को त्याग कर सहज स्वाभाविक और सादगी भरी जीवन शैली की तरफ लौटना चाहिए।  

ऐसा नहीं है कि अब तक विवाहों में सादगी के लिए प्रयत्न नहीं हुए हैं। समाज के सुधार के लिए कार्यरत लोगों ने बहुत सारे प्रयास किये हैं और करते रहते हैं। सामूहिक विवाह, दिन में विवाह, विवाह में सीमित संख्या में व्यंजन परोसना आदि  इस तरह के सुपरिचित प्रयास हैं। लेकिन यह एक कड़वा सच है कि समाज के धनी तबके ने इन प्रयासों से दूरी ही बरती है। अब कोरोना ने हम सबको इन प्रयासों को अमली जामा पहनाने के लिए मजबूर कर दिया है तो इस बात का स्वागत होना चाहिए और हमें इसे अपनी जीवन शैली का अंग बनाना चाहिए। कामना तो यह भी करनी चाहिए कि सुधार और बेहतरी की यह बयार विवाह समारोहों के अलावा हमारे शेष जीवन को भी प्रभावित करेगी और उसमें भी सकारात्मक बदलाव आएगा। इसीलिए प्रारम्भ में मैंने कहा कि बहुत बार बुराई में भी कोई अच्छाई छिपी होती है। 

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