मणिपुरी नृत्य में सर्वांग अभिनय पर जोर: श्री सिंहजीत सिंह सैंजा

साक्षात्कारकर्ता: पूर्णिमा मित्रा

लेखिका युवा साहित्यकार है।

पता- ए-59 करणी नगर, नागानेचीजी रोड, बीकानेर

वर्तमान समय में मणिपुरी नृत्य गुरूओं और नृत्य संरचनाकारों की जिक्र चलते ही गुरू सिंहजीत सिंह सैंजा का सौम्य और संवेदनशील चेहरा नृत्य प्रेमियों के समक्ष आ जाता है। पद्मश्री साहित्य कला परिषद एवार्ड, होमी भाभा एवार्ड, नृत्य-चूडामणि इत्यादि प्रमुख है। मणिपुरी नृत्य की अविरल साधना व प्रचार हेतु उन्हें नाॅदर्न-ईस्टर्न हिल्स यूनिर्वसिटी ने मानद डाक्टरेट की उपधि से सम्मानित किया। प्रस्तुत है गुरू सिंहजीत सिंह सैंजा से बातचीत के कुछ अंश:-

पूर्णिमा – मणिपुरी-नृत्य का उद्भव कब और कहां हुआ ?

सिंह जी – एकदम प्रामाणिक तौर पर इसकी उत्पति की तारीख निर्धारित करना तो कठिन है। लेकिन यह बहुत प्राचीन है। मणिपुरी में वैष्णव धर्म के प्रभाव पड़ने से संस्कृत, बांग्ला और मैथिली भाषाओं की रचनाओं पर भी यह नृत्य किया जाने लगा।

पूर्णिमा – किस वैष्णव राजा के समय मणिपुरी नृत्य का सर्वाधिक विकास हुआ ?

सिंह जी – राजा भाग्यचंद्र के समय इस नृत्य के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ। उनके समय में रास लीलाओं की शुरूआत हुई। पोशाकों में भी परिवर्तन हुआ।

पूर्णिमा – ‘रास’ कितने प्रकार के होते है ?

सिंह जी – कृष्ण की लीलाओं पर विभिन्न अवसरों पर अलग-अलग ‘रास’ का मंचन किया जाता है। रास मुख्यतः पांच प्रकार के होते है- दिवा रास, महारास, बसंत रास, कंुज रास और नित्य रास।

पूर्णिमा – मणिपुरी नृत्य में कौनसा संगीत प्रयुक्त किया जाता है ?

सिंह जी – मणिपुरी नृत्य नट-संकीर्तन पर आधारित है। राजा भाग्यचंद्र के समय से ही ये संगीत चला आ रहा है।

पूर्णिमा- ‘मणिपुर नृत्य’ की प्रमुख विशेषताएं कौनसी है ?

सिंह जी- इसमें वाचिक अभिनय कम है। इसमें सर्वांग अभिनय पर जोर दिया जाता है। इसमें पद संचालक बहुत होने के बावजूद घुंघरूओं का प्रयोग नहीं किया जाता है।

पूर्णिमा- नये और प्राचीन समय के मणिपुरी नृत्य में क्या बदलाव आया ?

सिंह जी- पहले मणिपुरी में रात-रात भर रास लीलाएं होती थी। दर्शक भक्तिभाव से भावविभोर होकर नृत्य देखते थे। जबकि आज मंच पर इस नृत्य को अधिकांश लोग मनोरंजन की दृष्टि से देखने आते थे। पहले लोगों के पास समय था। इसीलिए मणिपुरी नृत्य कलाकार एक ही चीज को बार-बार ठुमरी की तरह पेश करते थे। आज इस नृत्य को सम्पादित करके छोटे रूप में प्रस्तुत करते है।

पूर्णिमा- विदेशों में आपको क्या रिस्पांस मिला ?

सिंह जी – काफी अच्छा रिस्पांस मिला। विदेशी लोगों के इस नृत्य के प्रति रूचि देखकर हमें सुखद आश्चर्य हुआ। कई विदेशी लड़कियां भी इस नृत्य को सीखने में लगी है। 

पूर्णिमा- क्या हर मणिपुरी डांसर को नृत्य के अलावा गायन व वादन में निपुण होना चाहिए ?

सिंह जी- नहीं। ऐसा आवश्यक तो नहीं है। क्योंकि लड़कियां सिर्फ नृत्य सीखती है। लेकिन एक मणिपुरी डांसर को मृदंग की तालीम लेना इसीलिए उचित है क्योंकि इससे कलाकार को लय और ताल का सटीक ज्ञान हो जाता है।

पूर्णिमा – ‘परफार्मिंग आर्ट’ में ग्लैमर व फिजिकल फिटनेस की भूमिका में इंकार नहीं किया जा सकता है। क्या मणिपुरी नृत्य के संदर्भ में भी ये बात लागू होती है ?

सिंह जी – इस नृत्य में कलाकार का सुंदर होना एक अतिरिक्त गुण है। लेकिन इस नृत्य में शारीरिक परिश्रम करना पड़ता है। डांसर को फिजीकल रूप से सक्षम रहना अति आवश्यक है।

पूर्णिमा – आज के माहौल को देखते हुए आप अपने बच्चों को इस नृत्य के क्षेत्र में लाना पसन्द करेगें ?

सिंह जी – मुझे तो कोई आपत्ति नहीं है। मेरी बड़ी लड़की को इस नृत्य के प्रति गहरा रूझान है। वह हम दोनों से नृत्य की बारिकियां सीखती है। लेकिन छोटी बेटी को इस नृत्य में रूचि नहीं है। हमने भी उस पर कोई दबाव नहीं दिया।

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