मदन गोपाल लढ़ा
लेखक युवा कथाकार है।
सम्पर्क 144, लढ़ा-निवास, महाजन, बीकानेर
“ये क्या बकवास है। हम अपने बिजी शिड्यूल से वक्त निकालकर नाच-गान देखने थोड़े ही आए हैं।” अनमोल मन में झल्लाया। “ये कम्पनी वाले भी हैं ना, डिस्ट्रीब्यूटर को उल्लू बनाते हैं। टारगेट पूरा करने के लिए टूर पैकेज की घोषणा तो कर देते हैं मगर टूर के नाम पर यों जंगल में लाकर पटक देते हैं। मेट्रो सिटी में एक से बढ़कर एक होटल होंगे मगर शायद रूम रेंट कम होने के कारण ही पश्चिमी मुम्बई के इस बाहरी इलाके को चुना है कम्पनी वालों ने।”
गुस्से में कई देर तक तो स्टेज की तरफ देखा भी नहीं अनमोल ने। “ऐसे ठुमके तो छोटे शहरों में भी चलते हैं। टाइम पास कर रहे हैं कमीने। अरे घुमाने लाए हो तो किसी ढंग की जगह का तो प्रोग्राम बनाओ। और कुछ नहीं तो किसी मॉल-वॉल में ही ले चलो।”
गुस्सा उतरा तो स्टेज पर नजर डाली। ग्रुप में एक सिंगर के साथ बारह लड़कियां नाच रही थी मगर नजरें केवल उसी एक पर टिककर रह गई थीं। वह जिधर मुड़ती नजरें भी उसका पीछा करते हुए उधर ही चली जाती। यों उसकी पॉजीशन डांस को लीड करने वाली नहीं थी मगर उसकी भाव-भंगिमाएं बाकी सब पर भारी पड़ रही थी। संभवतया लम्बाई अधिक होने के कारण उसे चार-चार लड़कियों की पंक्ति में सबसे आखिर में रखा गया था। अगर उसकी लम्बाई कम होती तो उसको सबसे आगे रखना ही पड़ता। प्रोग्राम देखते हुए अनमोल को तो यही लगा। उस नृत्यांगना को तो इस बात का पता भी नहीं होगा। वैसे नृत्य करने वाले को इस बात से क्या सरोकार कि देखने वाला क्या सोच रहा है। अगर कोई इस बात की चिंता करने लग जाए तो शायद नाच ही नहीं पाए।
वह ग्रुप डांस में हिस्सा भर नहीं ले रही थी बल्कि उसे जी रही थी। उसके चहरे के पल-पल बदलते भाव, आंखों की चमक, अंगों का चालन इतना जीवंत था कि उसे केवल देखा व महसूस किया जा सकता था। गीत के बोल उसको कंठस्थ थे जो बरबस ही उसके अधरों से फूट रहे थे। अनमोल सोच रहा था कि यह कौशल कितनी साधना के बाद अर्जित हुआ होगा। एक-एक स्टेप को तैयार करने में उसने कितनी बार प्रैक्टिस की होगी। ऐसी नायाब प्रस्तुति तारीफ की मोहताज नहीं होती। प्रस्तुति के बाद उसे किसने क्या कहा, कितनी तालियां मिली, जजेज ने कितने नम्बर दिए, ये सब उस आनंद के आगे गौण हो जाते हैं। यह आनंद ही कलाकार का सबसे बड़ा प्राप्य है। कभी-कभी कोई सह्रदय दर्शक भी उसकी अनुभूति कर लेता है। अनमोल को लगा कि वह बेमतलब खींझ रहा था। हालांकि इसके बाद भी कई शानदार प्रस्तुतियां हुई मगर अनमोल तो मन ही मन में केवल उसे ही सराहता रहा।
कार्यक्रम के बाद अनमोल अपने रूम में लौट तो गया मगर उस गाने के बोल व भावपूर्ण नृत्य मुद्राएं चित्त से उतर ही नहीं रही थी। इससे पहले अनमोल ने म्यूजिक व डांस कई बड़े प्रोग्राम देखे थे। चार साल पहले एक ट्रेक्टर कंपनी के सौजन्य से उसको सिंगापुर जाने का भी मौका मिला जहां पॊप स्टार मडॊना का म्यूजिक कंसर्ट लाइव देखने का मौका मिला। उस नामी अमेरिकी स्टार मडॊना की दुनिया दीवानी है मगर अनमोल को उसके प्रोग्राम में जितना आनंद आया, उससे कहीं अधिक सरस लगी इस अज्ञात साधारण नृत्यांगना की प्रस्तुति। कार्यक्रम के बाद भी अनमोल अब तक उसके नाम तक से अनभिज्ञ था। वैसे अनमोल को नृत्य व गायन विधाओं की खास जानकारी भी नहीं थी। वो तो एक सीजन में सौ से अधिक ट्रेक्टर बेचने पर कंपनी ने यह टूर पैकेज दिया था इसलिए यहां मुंबई आना हुआ। होटल मैनेजमेंट ने आगंतुकों के मनोरंजन के लिए यह प्रोग्राम अरेंज किया था। यों तो कार्यक्रम में कई सेलिब्रिटीज को गेस्ट परफोरमेंस के लिए बुलाया गया था मगर अनमोल की उन सब में कोई रुचि नहीं जग पाई। मसला यह भी था कि म्यूजिक व डांस की दुनिया की हस्तियों को वो पहचानता तक नहीं था। जब प्रोग्राम खत्म हुआ तब एकबारगी उसके मन में आया कि स्टेज पर जाकर सबसे अच्छा डांस करने वाली उस अज्ञात डांसर को कुछ कैश अमाउंट गिफ्ट करे। अगर यह प्रोग्राम उसके शहर में होता तब वह शायद ऐसा करता भी। मगर यह मायानगरी मुंबई थी। यहां के रीति रिवाज किंचित जुदा थे। उसकी तरह सेल में टारगेट अचीव करने वाले देश भर के सौ डिस्ट्रीबूटर वहां मौजूद थे जो सब के सब तटस्थ भाव से प्रोग्राम देख रहे थे। उनको देखकर यह तय नहीं किया जा सकता था कि वे प्रोग्राम को एंजोय कर रहे थे या बोर हो रहे थे। भावशून्य सपाट चेहरों के साथ स्नेक्स खाते प्रोग्राम को देखने वाले ये लोग इतने निर्लिप्त कैसे रह पाते होंगे, यह शोध का विषय हो सकता था। शायद उनके मन में अपने बिजनस को लेकर कोई मंथन चल रहा हो। शायद वे इस बात को लेकर चिंतित हों कि उनकी गैर-मौजूदगी में तीन-चार दिनों तक स्टाफ धंधे को संभाल तो पाएगा। शायद उनको अगली बार टारगेट अचीव करने की चिंता सता रही हो। शायद इनको जी.एस.टी. का क्वार्टली रिटर्न भरने की चिंता हो। कुछ अपनी प्रतिस्पर्द्धी फर्म की बढती बिक्री से परेशान थे। कई बाजार में मंदी की चौतरफा खबरों से हताश थे। कई इस बात से खफा थे कि कंपनी ने टूर पैकेज में डिनर से पहले दो जाम की लिमिट तय कर रखी है। एक तो होटल के रूम में टीवी की साउंड क्वालिटी को बिलो स्टैंडर्ड बताते हुए झल्ला रहा था। कुल मिलाकर वे घूमने आकर भी खुश नहीं थे। अधिकांश तो वहां होकर भी वहां नहीं थे। अनमोल ने तसल्ली के लिए दोनों हथेलियों को चेहरे पर लगाकर जांचना चाहा। उसको महसूस हुआ कि उसके चेहरे पर अब वैसी कोमलता नहीं है जैसी बचपन में हुआ करती थी। चौथी-पांचवीं जमात में पढ़ते हुए जब वह ननिहाल जाता तब मामी अपनी बेटी की फ्राक उसको पहना देतीं। उसके गोलमटोल गौरे मुखड़े को देखकर एकबारगी तो पता ही नहीं चलता कि वह लड़की नहीं लड़का है। इसी मासूमियत के कारण गांव की नाट्य मंडली ने नवरात्र पर खेली जाने वाली रामलीला में उसको दो बार सीता का रोल दिया। नाट्य मंडली के मास्टर जी चेहरे-मोहरे के साथ उसकी आवाज से भी प्रभावित थे। स्त्री पात्रों के लिए लड़कों को तैयार करने में तो मेकअप से काम चल सकता था मगर आवाज के सुरीलेपन से ही पात्र की रंगत जमती थी। रामलीला में अभिनय के कई फोटो आज भी उनके एलबम में मौजूद हैं। पिछले दिनों निशा ने उनमें से दो फोटो को मोबाइल से स्कैन करने फेसबुक पर डाल दिए तो लाइक-कमेंट का आंकड़ा पांच सौ पार कर गया। निशा कभी-कभी मजाक में कहती भी, ‘‘अगर मैं आपके सीता के रोल की फोटो पहले देख लेती तो खुद राम का रूप बनाकर बारात लेकर आती।’’
सचमुच वक्त हर जड़-चेतन पर अपने दस्तखत करता चलता है। कोई भी उसके प्रभाव से बच नहीं सकता। मेकअप हो या फिर डाई, लाख जतन करने पर भी सच छुपाया नहीं जा सकता। वैसे अनमोल को यह बनावटीपन जरा भी पसंद नहीं है। उसने कभी बालों में से झांकती सफेदी को रंगवाने की नहीं सोची। कभी-कभी निशा टोकती है, ‘‘स्मार्ट लुकिंग के लिए ही सही, इस श्वेत प्रदेश को छुपा क्यों नहीं लेते?‘‘ वह इसके जवाब में ग्रामीण रूट की एक बस में एक बुजुर्ग के मुंह से सुनी बात को दोहरा देता, ‘‘बेर, आम और नर पके हुए ही अच्छे लगते हैं।’’
अगली सुबह रवानगी की तैयारी थी। अनमोल ने जल्दबाजी की अपनी आदत के अनुसार बेग पैक करके चैक-आउट करवा लिया और बाहर पोर्च में बैठ गया। उसकी फ्लाइट को अभी साढे तीन घंटे बाकी थे मतलब वह अभी घंटा भर इसी कैम्पस में गुजार सकता था। बाहर लॉन में चमेली के फूलों की भीनी खुशबू मन को मोह रही थी। करीने से कटी हुई घास, दोनों तरफ मेहंदी की कतार और बीच में यलो रोज मनभावन दृश्य रच रहे थे। कुछ अन्य फूलों के पौधे भी वहां थे जिनके नाम से वह अपरिचित था। अचानक एक लड़की पार्क के बीच में से निकली। उसके हाथों में पौधों की छंगाई करने वाला कटर था। संयोग से उसकी पीठ अनमोल के सामने थी। उसके चलने के अंदाज में एक मनमोहक लय थी। जैसे ही वह मेहंदी की कतार को पार करते हुए मुड़ी उसका चेहरा देखकर अनमोल की खुशी का पार नहीं रहा। यह वही डांसर थी जिसने परसों रात अपने जादुई नृत्य से अनमोल का मन जीत लिया था। वह कब खड़ा हुआ और कब उसके पास जा पहुंचा, पता ही नहीं चला।,
‘‘आप डांस बहुत अच्छा करती हैं।’’ अनमोल ने अपने भीतर के भावों को शब्द दिए।
‘‘आपको अच्छा लगा। थैंक्स वैरी मच। अब जरा मेरा गार्डन भी देखिए। डांस तो मेरी हॉबी है और गार्डनिंग जॉब।’’ उस अनाम लड़की ने कहा और चमेली के पौधे को कटर से संवारने लगी।
चमेली की मीठी महक से अनमोल का अंतस महक गया।