अजय बिस्सा
लेखक युवा कवि है। पता – भट्टडों का चौक, बीकानेर।
प्राईवेट – शिक्षक
सुबह सूर्य की किरणो के संग, हम शाला प्रागण मे मिलते थे।। रिमझिम बारिश की बूंदो की तरह, शिषयो पर ‘सार्थक ज्ञान’ की बरसा करते है। अस्वस्थ होना मानुष जीवन मे स्वाभाविक है, किन्तु, स्वस्थ होकर पुनः जल्द ही अपने कर्तव्यो को पूरा करते थे। सक्रिय और उत्तम शाला परिणाम की संरचना मंे, हम अपना सम्पूर्ण समर्पण देते है । कार्य - समय की घड़ी को नजरअंदाज कर, कर्तव्यो को कभी-कभी ईतवार को भी आकर पूरा करते थे। वो शाला संचालक शब्द अब कोरोना महामारी मे कही खो गये शायद, ‘हम एक परिवार है’ तभी नजरअंदाज कर दिए गये हम ।। बहुत कुछ कमाया हमने, वो था शिषयों का उज्ज्वल भविष्य, दुर्भाग्य ..... आपने शायद कुछ ना कमाया, तभी छोड दिया ‘फीस के भरोसे’ शाला परिवार शब्द की व्याख्या, कोरोना जग-जाहिर कर गया हमे अपने परिवार से अलग-थलग, ये दुष्ट कोरोना कर गया ।।
शिक्षक – अंनत, अपरिभाषित
गुरू की महिमा अंनत है, गुरू से ही जीवन और गुरू से ही अंत ( मोक्ष ) है। वंदन करू प्रथम में माँ को जिसने मेरा जीवन-निर्माण किया, फिर अन्य समस्त गुरूओं के संग जीवन निर्वहन का ज्ञान लिया। देखी दुनिया आपके ज्ञान की धार से हुआ मै मानुष आपके वाजिब क्रोध की हुंकार से रखना हमेशा आपके निश्छल प्रेम की छाव में भरोसा, सम्मान, सत्यता, चरित्र मेरे गुरू की पहचान सभी से।
कुछ समय बाद खुश है एल.एल.बी. किताबें
कुछ समय बाद खुश हैं... अलमारी में रखी एल.एल.बी. की किताबें... शायद कोई निकालेगा उनको... शायद पढेगा कोई उनको... शायद धूल झडे़गी उनकी... पुराने पेपर काम आएगा शायद... पलटे जाएगे एल.एल.बी. किताबों के पन्ने... पढे जाएगे उनमें लिखे शब्द... सराहा जाएगा शायद उनको.... कमरे से बालकनी में आएगी.... मोबाइल, टी.वी से दूर कराएगी... खुली हवा में सांस लेगी... महसूस कराएगी कॉफी की महक... महसूस कराएगी अधूरा वकील से पूरा वकील बनाने की... अलमारी में रखी एल.एल.बी. किताबें इंतजार में हैं... रह-रह कर देख रही हैं उम्मीद से.... शायद अब फिरेंगे दिन उसके... शायद टूटेगा उनका लॉकडाऊन... शायद टूटेगा उनका लॉकडाऊन...