संजय पुरोहित
लेखक वरिष्ठ व्यंग्यकार है पता: समीप सूरसागर धोबीधोरा बीकानेर
करप्शन प्रोटेक्शन कमीशन-सी.पी.सी.। कन्फयूज होने की जरूरत नहीं है। यह कमाल का शब्द- हमने सुना ई.पी.संघ के नवनियुक्तो अध्यनक्ष मेवालाल जी से। मेवालाल जी का तारूफ ये है कि इन्हों-ने आजीवन जम के श्उपरी कमाईश् की। अन्तोतरू जब उनकी काली कमाई से घडा भर गया तो एक बदनसीब दिन एक ईमानदार नागरिक ने उनको रिश्वतत की राशि लेते रंगे हाथों पकडवा कर अन्द र करवा दिया था। जब से जमानत हुई, तब से मेवालाल जी भ्रष्टाशचारियों के पक्ष में जनमत जुटा रहे हैं।
हमने जब इसके बारे में विस्ताईर से जानने की जिज्ञासा रखी तो मेवालाल बोले, ‘‘ईपीसंघ उन भ्रष्टा चारियों की राष्ट्री य संघ है जो ईमानदारों से पीडित है। ई मल्ल ब ईमानदार, पी मल्ल्ब पीडित और संघ तो है ही।’’ मेवालाल का इत्ताघ कहना था कि हमने थूक निगला। मेवालाल निर्लिप्तज होकर बोले, श्श्देखो भाई, अभी तक तक आप फकत ‘एंटी-करप्शन’ ही सुनते रहे हो। अब ये सुनने में आ सकता है-भ्रष्टाचार संरक्षण आयोग। ये हमारे संघ की मूलभूत मांग है। भ्रष्टाचार के विरूद्ध विधि द्वारा स्थापित कानूनी पचड़ों से सम्मानीय भ्रष्टाचारियों के मूलभूत प्राकृतिक अधिकारो की रक्षा जरूरी है। इसलिये इस प्रकार के संगठित आयोग की आवश्यकता काफी समय से फील की जा रही थी। जिस हिसाब से श्भ्रष्टाचार कलाश् की प्रोन्नीति हुई है, आने वाले टैम में हम सी.पी.सी. गठन के आईडिये को यथार्थ में पा सकते हैं।श्श् मेरी नजर में मेवालाल वैसे तो समझदार इंसान ही हैं पर उनका ये संगठन गठन के उपरान्त जो रूप हमारे सामने आया उससे हम कन्फदयूज थे। हमारे कन्फ यूजन को चेहरे पर चिपका हुआ देख मेवालाल जी शांत और संयत स्व र में बोले, ‘‘इसमें अचरज वाली तो कोई बात नहीं है। जो कला हमारे मुल्क की रग रग में समायी है, उसका संरक्षण होना चईयै कि नहीं चईयै ? सम्पेन्नता को प्राप्तय करने और उसे भोगने की मानवीय वृत्ति की जिस स्थिति तक हमें हमारे पुरखों ने पहुंचाया, उसका सम्मा न होना चईयै कि नहीं चईयै ? जीवन जीने के जिस आचार को हमारे पुरखों ने अपने खून पसीने से सींचा है, उसका प्रोटेक्शकन होना चईयै कि नहीं चईयै ?’’ हम सुन रहे थे। हां, हां भी कर रहे थे।
मेवालाल विस्ताार से अपने कथन के औचित्य को सिद्ध करने में लगे थे, ‘‘कुछ लोग भोजन के लिये जीते हैं। कुछ लोग खाने के इस ‘आउट ऑफ फैशन’ आईडिये को स्वीकार नहीं करते। वे मनोयोग से भ्रष्ट। आचरण द्वारा ‘मुद्रा खाने’ के लिये जीते हैं। उनका मानना बिल्कुील साफ है। जब आप मुद्रा खायेंगे तो दूसरे तमाम खाने ऑटोमेटीकली आपकी शरण में आते चले जायेंगे। अगर खाना है तो मुद्रा खाओ। नहीं खाना है तो ‘तली’ हुई चीजों को मत खाओ। हम भ्रष्टानचारियों के सोचने का सेंस भी डिफरेंट है।’’
श्श्बट मेवालाल जी, यह तो नैतिक रूप से गलत है। ऐसे कैसे भ्रष्टाहचारियों को संरक्षण दिया जा सकता है ?श्श् हमने पुरजोर तरीके से अपनी बात रखी।
हा हा हा। हंसे मेवालाल जी। लगता है आपको भी ईमानदारी के कीडे ने काटा हुआ है। कोई बात नहीं। ईमानदारी नामक यह डीजीज अभी भी कुछ हलकों में पाई जाती है। पर भाई जरा सोचिये, कोई मोटा अफसर खनन से खन-खन करते करोड़ों रूपये जीम जाये। कोई जिले का तोप पुलिस अफसर थानों से ‘बंधी’ बांध के सात पुश्तों के ऐश के बंडल बांध ले। कोई दारू से ही कैरेटों में नोटों के ढिगले लगा दे। कोई हाऊसिंग करते करते नोटों के फलेट खड़े कर दे। ऐसे अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करने वाले तीक्ष्णबुद्धि मिनखों को शौर्यशाली समझा जाना चईयै कि नहीं। ऐसे सैकड़ोंझारों राजसेवक धन बटेर-रत हैं। ऐसे लोगों की ‘राजभक्ति’ भी प्रशस्ति योग्य होनी चईयै कि नहीं। इण्डिया शौर्य और भक्ति की धरती है। आखिरकार इस ‘शौर्य’ और ‘भक्ति’ की कद्र करना हमारा प्राकृतिक दायित्व है। जब कोई बडा व्यखक्ति इनको अपने शेयर के बदले खुल्ली लूट मचाने के लिये सिग्नल देता है। तब टॉप भ्रष्टों के माथे का क्रीमी लेयर वर्क करता है। हमारा संघ ऐसे जुझारू भ्रष्टों के संरक्षण के लिये संकल्पबद्ध है। इसी संकल्पपूर्ति के लिये अब हम अपने ज्ञापन में सरकार को ऐसे ऐसे नियम कायदों के सुझाव दे रहे हैं कि भ्रष्टांचारी निष्फिक्र होकर काम कर सके।’’
हमारा माथा घूमने लगा था। मेवालाल जी अब आसमान की ओर देख रहे थे। उनके श्रीमुख से शब्दा प्रस्फुमटित हो रहे थे, श्श्देखना एक दिन ऐसा आयेगा जब हमारे ज्ञापन पर सरकार कार्यवाही करेगी। सरकार खुद कहेगी श्हे दिल के टुकड़ों! काळजे की कोरों! हे भ्रष्टों ! खुल्ले खेलो। कोई रोकने-टोकने वाला नहीं।’’
‘‘हैं ?’’ हम बोले, ‘‘ऐसा भी कभी हो सकता है भला ?’’
भाई मेरे। जरा सोचो, जो आदमी करोडों इकटठे करने का माददा रखता है, उसकी कोई इज्जत है कि नहीं। कितनी मेहनत करनी पड़ती है बेचारे भ्रष्टों को! उनके मानवाधिकार है कि नहीं ? जनता के खून-पसीने की कमाई को चूसना मधुमक्खियों के शहद इकट्ठे करने से कम मेहनत का काम नहीं। ऐसे भ्रष्टों की इज्जत और सम्मान होना तो दूर, कानूनों से उन्हे मेंटली टॉर्चर किया जाता है। हमारा संघ अब यह नहीं होने देगा। हमारा संघ भ्रष्टा चारियों के सम्मा न की लडाई नीचे से उपर तक लडेगा।श्श् यह कह कर उसने हमारी तरफ देखा। हम नहीं दिखे। तब मेवालाल जी ने नीचे देखा।
हम नीचे थे। चारों खाने चित्तर मुद्रा में।