क्रिकेट के प्राफेसर थे डीन जोंस

मनीष कुमार जोशी

लेखक खेल समीक्षक है।

पता – सीताराम गेट के सामने , बीकानेर।

डीन जोंस नाम उस समय पहली बार चर्चा में आया जब एलन बॅार्डर के नेतृत्व वाली कंगारू टीम 1986 में भारत आयी। यह टीम पराजित होकर आयी मजबूत टीम थी। भारत के दौर पर आने से पहले यह टीम न्यूजीलैण्ड के हाथों सीरीज हार कर आयी थी परन्तु इस टीम की बल्लेबाजी मजबूत थी। इस मजबूत बल्लेबाजी वाली टीम में शामिल थे डीन जोंस। इस युवा बल्लेबाज के लिए इस टीम में कुछ करने के लिए बहुत कम स्थान था। सलामी बल्लेबाज के रूप में ज्यॅाफ मार्श और डेविड बून की मजबूत जोड़ी थी। यह जोड़ी खेलती तो लगता कि इन बल्लेबाजों को दुनिया का कोई भी गेंदबाज आउट नहीं कर सकता है। भारत के खिलाफ ही एक वनडे में तो इस जोड़ी ने चालीस पैंतालीस ओवर अकेले ही खेल लिये थे। यह जोड़ी टीम को हमेशा ही मजबूत आधार देकर पवेलियन जाती थी। उसके बाद दो विकेट गिरने के बाद एलन बॅार्डर क्रीज पर आते थे। जो उस समय दुनिया के महान बल्लेबाजो में शूमार थे। वे किसी भी परिस्थित में बल्लेबाजी कर सकते थे। ऐसे में नंबर तीन पर बोर्डर ने डीन जोंस को खेलने का आदेश दिया। जहां मजबूत सलामी बल्लेबाजों की जोड़ी हो और चार नंबर पर एलन जैसा बल्लेबाज हो तो तीन नंबर पर खेल रहे डीन जोंस के लिए अपनी पहचान बनाना काफी मुश्किल था। उसे भरोसा कायम करने के लिए बड़ी पारियां खेलने की जरूरत थी। पहले रन सलामी जोड़ी बना लेती थी और यदि जोंस असफल रहते तो बोर्डर तैयार ही थे। ऐसे में अपना भरोसा बनाना डीन जोंस के लिए एक चुनौती थी। डीन इस चुनौती में हमेशा सफल रहे। ज्याॅफ मार्श और डीन जोंस अपने हुनर से स्कोर बोर्ड पर जो बिल्डिंग खड़ी करते थेए उसकी फिनिशिंग का कार्य डीन जोंस करते थे। यह उनकी प्रतिभा ही थी कि उन्होनें मार्श.बून की जोड़ी और एलन बोर्डर के बीच अपनी पहचान बनायी। 

डीन जोंस ने 1986 के भारत दौरे पर वनडे खेल का तरीका बदल दिया। अब तक वनडे भी टेस्ट मैच की तरह ही खेला जाता रहा था। वनडे में भी टीमो का स्कोर 50 ओवर में 150 -180 रन हुआ करता था। डीन जोंस ने वनडे में बल्लेबाजी का तरीका बदला। वो जब बल्लेबाजी करने आते थे तो मार्श -बून की जोड़ी का दिया गया आधार उनकी विरासत होता था। ऐसे में वो खुलकर बल्लेबाजी करते थे। वनडे में तेज बल्लेबाजी की शुरूआत का श्रेय भी कहीं न कही जोंस को भी है। अपने निधन से कुछ दिन पहले डीन जोंस ने अपने जीवन की यादगार पारी की फोटो सोशल मीडिया पर शेयर की थी। वास्तव में यह उनके क्रिकेट कैरियर की ही नहीं बल्कि टेस्ट क्रिकेट की महान पारी थी। 1986 के भारत दौरे में अतिम टेस्ट मैच चैन्नई ;तत्कालीन मद्रासद्ध में खेला गया था। विष्व प्रसिद्ध चैपक स्टेडियम में खेला गया यह मैच दुनिया के सर्वकालिक श्रेष्ठ मैचों में शामिल है। यह मैच दुनिया का दूसरा टाई टेस्ट मैच था। इस मैच की पहली पारी में मार्श.बून की जोड़ी ने अच्छी शुरूआत की। 48 रन के स्कोर पर आस्ट्रेलिया का पहला विकेट गिरा। पहला विकेट गिरने के बाद डीन जोंस क्रीज पर आये। उस समय चैन्नई का तापमान 40 डिग्री था। उस समय चैन्नई में टेस्ट मैच खेलना काफी मुश्किल होता था। जोंस ने क्रीज पर आते ही जोरदार बल्लेबाजी शुरू कर दी। उन्होने डेविड बून के साथ साझेदारी की। उनके साथ उनकी लय बनने के बाद बिगड़ी ही नहीं बल्कि जमती गयी। कपिलदेवए चेतन शर्मा और मनिनंदर सिंह कोई भी उनकी जोड़ी को तोड़ नहीं पाया। इस पारी की विशेष बात यह थी कि 40 डिग्री तापमान को जोसं सहन नहीं कर पाये। उनकी स्वास्थ्य खराब हो रहा था उसके बावजूद वो क्रीज पर डटे रहे। दो बार तो उन्होने पर क्रीज पर ही उल्टियां कर दी। एक बार तो वे गिर पड़े। फिर फिजियोथिरेपिस्ट को बुलाया गया। उन्होने काफी पी और फिर बल्लेबाजी करने क्रीज पर आ गये । इन स्वास्थ्य की कठिन परिस्थितियों में भी वे शानदार बल्लेबाजी करते रहे। एक बार भी उनसे शॅाट में चूक नहीं हुई। खराब स्वास्थ्य के बावजूद उन्होनें गेंदबाजों को कोई अवसर नहीं दिया और 210 रन बना दिये। उनके इस दोहरे शतक से आस्ट्रेलिया ने पहाड़ सा स्कोर बनाया। बाद में यह टेस्ट में टाई हो गया। मैच के बाद डीन जोंस को अस्पताल में भर्ती कराया गया। 

जोंस शुंरू से ही हौसलों से खेलने वाले खिलाड़ी थे। उन्होंनें कभी भी विपरित परिस्थितियों से हार नहीं मानी। शुरूआत में उन्हें विपरित परिस्थितियों में खेलने के लिए वेस्टइंडीज भेजा गया। कंगारू टीम कैरेबियन दौरे पर थी। टीम के ग्राहम यैलप के चोटिल होने पर उन्हे वेस्टइंडीज भेजा गया। एक युवा लड़के को ज्यॅाल गार्नरए वारेन डेनियल और मैल्कम मार्शल के सामने उन्हीं की धरती पर खेलना था। पोर्ट आॅफ स्पेन टेस्ट मैच में कैरेबियन आक्रमण की तिकड़ी के सामने सभी प्रमुख कंगारू बल्लेबाज पवेलियन लौट चुके थे। स्कोर था 5 विकेट पर 85 रन । ऐसे में डीन जोंस को क्रीज पर भेजा गया। गार्नर और मार्शल की गेंद इस युवा बल्लेबाज के गर्दन और छाती पर आ रही थी। यह युवा बमुश्किल इन तुफानी गेंदो से बच रहा था। ज्याल गार्नर ने जोंस से कहा कि हमसे बचने का एक ही उपाय है कि क्रीज छोड़कर पवेलियन लौट जाओ। लेकिन जोंस डरा नहीं। तेज गेंदबाजी का सामना करता रहा। एलन बोर्डर के साथ मिलकर स्कोर को आगे बढ़ाता रहा । उसने बोर्डर के साथ मिलकर 100 रनो की साझेदारी कर व्यक्तिगत स्कोर 48 रन बना लिये । इन विपरित परिस्थितियों में भी उन्होंनें संयमित पारी खेली। 

तनावपूर्ण परिस्थितियों में साहसिक पारियां खेलकर जोंस ने टेस्ट टीम में तो स्थान बना लिया था परन्तु वनडे क्रिकेट में भी उसने अपना जलवा दिखाया। 1987 में भारत में खेले गये वनडे विश्वकप में उसने 300 से भी ज्यादा रन बनाये जिसमें तीन अर्धशतक शामिल थे। वनडे क्रिकेट में वो ऐसे खिलाड़ी थे जो क्रीज पर आते ही गेंद पर प्रहार करते थे। वनडे क्रिकेट में उन्होंने बल्लेबाजी का तरीका बदल दिया।

hi_INHindi