मोहन से महात्मा की यात्रा: अहिंसा के मार्ग पर

रामगोपाल व्यास ‘धर्मेश’

लेखक शिक्षाविद् एवं समालोचक है। पता- गोपीनाथ भवन के पास, बीकानेर

महात्मा गांधी जिन्हें ‘बापू’ के नाम से जाना जाता है, का जन्म 2 अक्टू 1869 को गुजरात के पोरबन्दर में करमचंद गांधी के घर हुआ था। मोहनदास कमरचंद गांधी से महात्मा गांधी बनने के दौरान जो उन्होंने यात्रा की वह अविस्मरणीय है। कोई व्यक्ति राष्ट्र का पिता हो, वह साधारण व्यक्तित्व कैसे हो सकता है। ऐसे ही साधारण से असाधारण व्यक्तित्व बनने की प्रक्रिया तब आरम्भ हुई जब वह भारत में शिक्षा पूर्ण कर बैरिस्ट्री की पढ़ाई हेतु इंग्लैण्ड गये तथा वहां से वापस आकर वकालात प्रारम्भ की। इसी दौरान उन्हें एक मुकद्में के संबंध में दक्षिक अफ्रिका जाना पड़ा। उस समय वहां रह रहे भारतीयों की दुर्दशा देखकर रहा नहीं गया और वहां के लोगों के सहयोग से अत्याचारों के विरूद्ध आवाज उठाई जिसके कारण उन्हें कई बार अपमानित होना पड़ा। इसी पीड़ा को उन्होंने भारत में भी देखा। और उन्होंने भारत में ब्रिटिश हुकुमत द्वारा भारतीयों पर किये जा रहे अत्याचारों के विरूद्ध आन्दोलन का मानस बनाया। पूरे देश की जनता का सहयोग भी उन्हें मिलना प्रारम्भ हुआ। यह यात्रा पूर्णतया अहिंसा के मार्ग पर थी। 

चलिए आपको संक्षेप में यह यात्रा करवाते है। सन् 1906 में गांधीजी ने ट्रांसवाल एशियाटिक रजिस्ट्रेशन के खिलाफ पहला सत्याग्रह अभियान चलाया। सन् 1915 में दक्षिण अफ्रिका में रह रहे भारतीयों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ सत्याग्रह किया। सन् 1917 में चम्पारण(बिहार) में लैण्डलाॅर्ड द्वारा किसानों के विरूद्ध अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाई। सन् 1920 में गांधीजी राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी में सम्मिलित हुए। उनके द्वारा अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ ‘‘असहयोग आंदोलन ’’  चलाया तथा लोगों से अंग्रेजी सरकार का सहयोग नहीं करने तथा ‘कर’ नहीं चुकाने के लिए आह्वान किया। सन् 1930 में अंग्रेजों के नमक पर एकाधिकार के विरूद्ध आवाज उठाई तथा 12 मार्च 1930 को गुजरात के साबरमती आश्रम से दण्डी गांव तक की पैदल यात्रा की। माना जाता है इस पैदल यात्रा के दौरान करीब 60 हजार आन्दोलनकारियों की गिरफ्तारी हुई। इस यात्रा का मुख्य प्रयोजन लोगों को नमक एकाधिकार नीति के विरूद्ध जागृत करना था।

गांधीजी हमेशा से सभी वर्गों को साथ लेकर चलने वाले व्यक्तित्व थे। उन्होंने सन् 1932 में दलितों एवं अछूतों पर होने वाले अत्याचारों के विरूद्ध आवाज उठाई तथा अछूत विरोधी लीग की स्थापना की तथा इस संगठन के बैनर तले 8 मई 1933 को छूआछूत विरोधी आन्दोलन की शुरूआत की। सन् 1942 में भारतीय कांग्रेस के बम्बई अधिवेशन में अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने के आहवान के साथ ‘‘अंग्रेजो भारत छोड़ो ’’ का नारा देकर आन्दोलन शुरू किया और सामूहिक नागरिक अवज्ञा आन्दोलन ‘‘करो या मरो ’’  प्रारम्भ करने का निर्णय किया गया।

भारत को अंग्रेजों के शासन से मुक्ति दिलाने के लिये चलाये जा रहे विभिन्न आन्दोलनों के इस दौर में कुछ ऐसी घटनाएं भी घटित हुई जिन्होंने गांधीजी के अहिंसावादी सिद्धान्तों को गहरी ठेस पहुंचाई और उन्हें इन घटनाओं ने झकझोर कर रख दिया। 

एक घटना 13 अप्रैल 1919 की है। बैशाखी का दिन था और लोग बैशाखी का त्यौहार मनाने के लिए अमृतसर के जलियांवाला बाग में हजारों की तादाद में एकत्रित हुए। इसमें अधिक संख्या हमारे सिक्ख भाईयों की थी। इस मौके पर एक सभा के आयोजन की व्यवस्था की गई। ऐसे भीड़ भरे माहौल में सभा करना तत्कालीन जनरल डायर को नागवार लगा। उसने सभा का आयोजन न करने तथा भीड़ को वहां से चले जाने का आदेश दिया। मगर आजादी के दीवानों ने आदेशों की परवाह नहीं की जिसके परिणाम जनरल डायर बौखला गया तथा भीड़ पर गोली चलाने का आदेश दे दिया। कहा जाता है कि इस गोली काण्ड में एक हजार से अधिक लोगों की मौत हुइ तथा सैकड़ो घायल हुए। इतिहास में यह घटना ‘‘जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड ’’ के नाम से जानी जाती है। 

इसी प्रकार की एक घटना 5 फरवरी 1922 को गोरखपुर के पास कस्बा पुलिस चैकी पर घटी। यहां आक्रोशित जनता की भीड़ ने ब्रिटिश सरकार की पुलिस चैकी को आग के हवाले कर दिया। बताया जाता है इस घटना को ‘‘चोरा चोरी काण्ड’’ के नाम से जाना जाता है। इस घटना के लिए ब्रिटिश सरकार ने अनेको लोगो पर मुकदमा चलाया जिसकी जनता की तरफ से पैरवी पण्डित मदनमोहन मालवीय ने की और आरोपियों को आरोप मुक्त कराया।

गांधीजी के लिये महात्मा गांधी का प्रथम सम्बोधन रविन्द्र नाथ टैगोर द्वारा किया गया। इसी प्रकार नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने 4 जून 1944 को सिंगापुर से एक रेडियो प्रसारण में प्रथम बार ‘‘राष्ट्रपिता ’’ नाम से संम्बोधित किया था। ऐसी विभूति को दिनांक 30 जनवरी 1948 को रिवाल्वर गोली के माध्यम से काल ने अपना ग्रास बना लिया। गांधीजी असाधारण व्यक्तित्व थे लेकिन वह सरल एवं सहज थे। उनका पूरा जीवन सार्वजनिक था। इसी कारण पूरा देश ही नहीं विश्व भी उनको हमेशा याद करता है।

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