एक मोड़ ऐसा भी….

नदीम अहमद ‘नदीम’

लेखक वरिष्ठ साहित्यकार है। पता बड़ी कर्बला मार्ग, चैखूंटी बीकानेर

मज़हर  मस्जिद  से  नमाज  पढ़कर  आया  था।  घर  के  दरवाजे  पे  हल्की  थाप  दी  और ‘अस्सलामो  अलैयकुम’  कहते  घर  में  दाखि़ल  हुआ,  रसोई  में  काम  कर  रही  उसकी  बीवी  नाजऩीन ने सलाम  का  जवाब  दिया। मज़हर  सोफे पर  बैठते हुऐ बोला  ‘नाजिश  किधर  है।’

‘वह  तो सिमरन  के घर  गई  है।’ नाज़नीन  ने रसोई में से ही  जवाब  दिया।

“कितनी  बार  कहा  है  कि  उसको  अकेले,  मत  जाने  दिया  करो,  अंधेरा  होने  वाला  है।  समीर से कहो कि  उसको लेकर  आऐ।” मज़हर  ने गुस्से  में  कहा।

“समीर  भी  घर  पर  नहीं  है  नाजिश  भी  तो  अपनी  मौसी  के  घर  ही  तो  गई  है  कौनसी क़यामत  आ  गई,  दो गली  छोड़कर  मकान  है  ख़ुद  ही  आ  जायेगी।”

गुस्से  को  लगभग  पीते  हुऐ  नाज़नीन  ने  बहुत  धीरज  से  जवाब  दिया,  मगर  उसके  सीने  मंे जैसे आग धधक  रही  थी।  वह  ख़ुद  से ही  बात  करने लगी।

“अम्मी  ने  इस  आदमी  के  साथ  मेरी  शादी  करके  मेरी  ज़िन्दगी  को  जहन्नुम  बना  दिया। इस  सनकी  आदमी  के  साथ  रोज  तिल-तिल  कर  मरना  पड़  रहा  है।  अगर  ये  बच्चे  नहीं  होते तो बहुत पहले ही इस ज़िन्दगी के सफर को खत्म कर देती।’’ 

नाजनीन गुस्से को अपने भीतर ही रखती लेकिन खुद में बात करने का हूनर शायद उसे ज़िन्दा रखे हुए थो। मज़हर एक सरकारी ऑफिस में पहले क्लर्क था। प्रमोशन लेकर ए.ए.ओ. बन गया है। गेहूंआ रंग और चेचक के दागों से भरे चेहरे वाले मजहर को नाजनीन जैसी बेहद खूबसूरत और खुद से उम्र में पांच साल छोटी बीवी मिलना वाकई चमत्कार और किस्मत जैसे लफ़्जों के अस्तित्व पर मुहर लगने जैसा था।

नाज़नीन  से  बड़ी  दो  बहने  थी।  छोटी  होने  के  कारण  अम्मी-अब्बा  की  लाडली  थी।  स्कूल में  दीपिका  मैडम  के  प्रोत्साहन  से  टेबल  टेनिस  खेलना  शुरू  किया  और  जल्दी  ही  राज्य  स्तर  की टीम  में  जगह  बना  ली।  नाज़नीन  के  फोटो  अखबारों  में  आने  लगे।  शाबाशी  और  तारीफ  के  साथ अम्मी  के  कानों  तक  ये  शब्द  भी  पहुंचे  कि  “बेटी  छोटे  कपड़े  पहनती  है  अभी  से  ये  हाल  है  तो आगे  तो  और  ज़्यादा  बेहयाई  होगी।”  मगर  अम्मी  ने  इन  बातों  पर  कोई  ध्यान  नहीं  दिया  बल्कि नाज़नीन  की  हौसला  अफजाई  की  कहा  “बेटे  हमेशा  सबकी  सुनो  और  अपने  मन  की  करो  अल्लाह ने  हूनर  और  का़मयाबी  दी  है  तो  इसको  बरकरार  रखो  दुनिया  खाती  अपना  है  और  बाते  दूसरांे की  करती  है।  इसलिए  अपना  काम  करते  रहो  बस  ख़्याल  अपनी  हद  और  परिवार  की  इज़्ज़त  का ज़रूर  रखना।”

अम्मी  की  कही  बातों  ने  नाज़नीन  के  लिए  मंत्र  का  काम  किया  और  दूगने  उत्साह  से प्रेक्टिस  जारी  रखी।  दीपिका  मैडम  हमेशा  कहती  थी  कि  नाज़नीन  तुम  ज़रूर  विश्व  स्तर  पर  देश का  नाम  रोशन  करोगी।  लोग  उसे  दूसरी  सानिया  मिजाऱ्   कहते  तो  उसको  गर्व  की  अनुभूति  होती थी।

कूकर  की  सीटी  ने  उसकी  तंत्रा  भंग  की  वही  कमरे  से  मज़हर  की  कर्कश  आवाज़  सुनकर नाज़नीन  को सुहानी  यादों  की  दुनिया  से बाहर  आना  बहुत  बुरा  लगा।

“चाय  बनाने में  इतनी  देर  लगती  है  क्या” मजहर  ने लगभग  चीखते हुऐ कहा।

“हां  ला  रही  हूं।”  नाज़नीन  ने  कहा।  नाजिश  भी  मौसी  के  घर  से  आ  चुकी  थी।  सीधी रसोई  में  आकर  मम्मी  के  गले मं  हाथ  डालकर  अपनी  ख़ुशी  का  इज़्हार  करने लगी।

चाय  छान  रही  नाज़नीन  ने उसको कहा  कि  “अरे रूक  तो सही  चाय  गिर  जायेगी।”

“क्या  मम्मा  हर  वक्त  काम  ही  काम,  कभी  तो  ढंग  से  बात  किया  करो  जब  देखो  तब  मुंह पर  ताला  चेहरे  पर  दुःख  ही  दुःख  नजर  आता  है।  आपकी  बड़ी  बहने  अब  आपकी  छोटी  बहने लगने लगी  है।  पता  है  क्या ?”

नाज़नीन  को  लगा  आज  बेटी  ने  जैसे  सच  का  द्वार  खोल  दिया।  कल  ही  उसने  बहुत दिनों  बाद  आइना  देखा  था,  बेटी  सच  ही  तो  कह  रही  है।  चाय  का  कप  मज़हर  के  सामने  रखा बेटी  भी  वही  पास  में  बैठी  थी।

“हां  अब  बता  क्या  कह  रही  थी ?“ 

“सींगिग  इंडिया  आॅडीशन’  में  मेरा  सलेक्शन  हो  गया  है।  जब  मौसी  के  घर  भी  तब  कॉल आया  था।”  यह  बोलते  ही  नाजिश  को  भी  लग  गया  था  कि  उससे  अभी  बहुत  बड़ी  गलती  हो  गई है।  आधा  घूंट  चाय  भी  मज़हर  के  मुंह  में  शायद  नहीं  गया  था  कि  वह  उछल  पड़ा  “क्या  कहा ?” आंखें  लाल करता  हुआ  वह  खड़ा  हो गया  ‘ख़बरदार मुझे ये सब  पसन्द  नहीं  है।’

नाजनीन  जो  हमेशा  डर-डर  के  रहती  थी  मगर  आज  शेरनी  की  तरह  सामने  आ  खड़ी  हुई “मेरी  बेटी  कम्पीटीशन  में  जायेगी  और  हर  हाल में  जायेगी।”

आवाज में पुख़्तगी और मजबूती के साथ बेटी की पैरवी करना हंगामा-ए-बरपा हो गया टेबिल पर  पड़े  चाय  के  कप  से  उठती  भाप  धीरे-धीरे  मद्धम  पड़  रही  थी।  लेकिन  मज़हर  की जबान  आग  उगल  रही  थी।  बेटी  ने  बीच  बचाव  किया  और  फै़सला  सुना  दिया  कि  वो  कॉपीटिशन में  भाग नहीं  लेगी।

ठंडी  हो  चुकी  चाय  की  तरह  माहौल  भी  ठंडा  हो  गया  मगर  नाज़नीन  के  ज़ेहन  में  अन्दर ही  अन्दर  गुस्से  का  उबाल  बरकरार  था।  बेटी  समझदार  थी  आकर  मां  को  समझाया,  अश्रु  धारा बह निकली कुछ गुबार कम हुआ मगर विचारों का तूफान अब भी शान्त होने का नाम नहीं ले रहा है।

उसे  याद  आया  अरशद  का  चेहरा  उसी  कि  हम  उम्र  था,  प्यार  करती  थी  अरशद  को बेइन्तहा  और  शादी  भी  करके  उसी  के  साथ  ज़िन्दगी  बिताने  के  न  जाने  कितने  ख़्वाब  सजाये  थे उसने। उस रोज ख़्वाब चकनाचूर हो गए थे। जब बड़ी दो बहनों की सगाई के साथ उसकी सगाई की घोषणा भी आनन-फानन में हो गयी थी। वह जब प्रेक्टिस करके घर आई, रैकिट यथा स्थान रख रही थी तब उसकी बड़ी बहिन इनाया ने हंसते हुए मजहर के साथ संगाई की बात बताई थी।

“मज़हर  मज़हर”  दो  तीन  बार  याददाश्त  पर  जोर  डालते  ही  मज़हर  का  चेहरा  सामने  आ गया  था।  उसी  के  मोहल्ले  का  ही  तो  था  मज़हर।  मज़हर  का  ख़्याल  करके  ही  उसकी  आंखां  के आगे अंधेरा  सा  छाने लगा  था  वह  बिना  कुछ  कहे बाथरूम  में  जाकर  खूब  रोई  थी।

टेबिल  पर  टेनिस  की  गेंद  को  रैकिट  से  छकाने  वाली  नाज़नीन  ज़िन्दगी  के  खेल  में   खुद  को  आज  फिसड्डी  समझ  रही  थी।  घर  के  हालात  और  लड़की  होने  के  अहसास  ने  उसकी ज़िन्दगी  को  आज  गेंद  बना  डाला।  बग़ावत  की  दीवार  ज़्यादा  ऊंची  नहीं  कर  पाई  और  ज़िन्दगी रूपी  गेंद  मज़हर  के  पाले  में  जा  गिरी।  खेल  ख़त्म  हो  चुका  था  नाज़नीन  ने  उदासी  का  लबादा ऐसा  ओढ़ा  कि  दुनिया  उस  खिलाड़ी  नाज़नीन  को  भूल  गई।  समझौता  किया  था  उसने  लेकिन बेटी  को  अपने  जैसा  नहीं  बनाना  चाहती  थी।  बड़ी  बहने  खुशहाल  थी  दोनों  के  पति  प्रोग्रेसिव  सोच के  थे,  साथ  उनमें  बहुत  ही  अच्छा  ताल-मेल  था।  दोनों  बड़ी  बहिने  अपने  परिवारों  के  साथ छुट्टियों  में  यात्राऐं  करती  पिकनिक  मनाने  जाती।  नाज़नीन  जब  भी  बहनों  के  साथ  जाने  का कहती  मज़हर  सख़्ती  से  मना  कर  देता  और  नाज़नीन  की  बहनों  और  उनके  बच्चों  की  आलोचना करता।  कभी  उनके  कपड़ो  पर  तंज  करता।  नाजनीन  खून  का  घूंट  पीकर  रह  जाती  थी।  नाजिश को  हमेशा  हिजाब  पहनने  की  ताकी़द  करता  और  नाज़नीन  को  भी  सर  में  दुपट्टा  सरकने  पर डांट  देता  था।

नाज़नीन  पहनावे  के  आदाब  खूब  समझती  थी।  उसे  भी  सलीके  से  रहना  आता  था।  मगर मजहर  की  दकियानुसी  सोच  के खिलाफ  दिल में  हमेशा  गुस्सा  ही  रहता  था।

मोबाईल  की  घण्टी  ने  विचारों  को  विराम  दिया।  मोबाईल  पर  बड़ी  बहिन  इनाया  की आवाज़  थी।  “नाजनीन  हम  लोग  घूमने  जयपुर  जा  रहे  है।  तू  और  तेरे  बच्चे  आना  चाहे  तो  बता रिजर्वेशन  करवा देते है।”

“नहीं  बाजी  आना  हो  नहीं  पायेगा।  समीर  ट्यूशन  जाता  है  और  नाजिश  का  कोर्स  भी  पूरा नहीं  है।”

दरअसल  नाजनीन ने कभी भी हकीकत से रू-ब-रू करवाना मुनासिब नहीं समझा। अपना  संघर्ष वो खुद ही कर रही थी। इनाया और शाजिया  ने भी बहुत  ज्यादा  गौर  नहीं किया कि नाजनीन और उसके शोहर के बीच सब कुछ अच्छा  नहीं है।

“अच्छा  कोई  बात  नहीं  नाजिश  को  मेरे  घर  भेज  दे  कुछ  काम  है।  सिमरन  आज  ट्यूशन से देर  से आयेगी।” इनाया  ने कहा।

इनाया  ने नाजिश  को घरेलू  काम  में  सहयोग के  लिए  बुलाया  था।

मौसी  और  भांजी  के  बीच  बातों  ही  बातों  में  नाजिश  ने  अपने  अब्बू  मजहर  की  आदतों और सनकीपन  से  अवगत  करवा  दिया।  कुछ  कुछ  शक  तो  था  इनाया  को  लेकिन  बात  बहुत  गम्भीर  हो सकती  है  ऐसा  इनाया  ने  कभी  नहीं  सोचा  था।  मौसी  के  घर  से  आने  के  बाद  नाजिश  का  व्यवहार आज  बहुत  बदला  बदला सा  था।  घर  में  दाखि़ल होते ही  मज़हर  से सामना  हुआ।

‘तुम्हारा  हिजाब  कहां  है  नाजिश।’

‘हवा  में उड़  गया’  कह  कर  नाजिश  बिना  उसकी  और  देखे कमरे में  चली  गई।

‘हवा  में  उड़  गया  मतलब।’  ये  क्या-क्या  जवाब  है।  चीखते  हुऐ  मजहर  बोला।  कोई  जवाब नहीं  मिला  वह  बौखला  सा  गया।  मगर  अपनी  जगह  बैठ  गया।  मज़हर  के  समझ  में  नहीं  आ  रहा था  कि  इस  लड़की  को  हो  क्या  गया  है  ?  समीर  से  भी  बात  कि  लेकिन  उसको  भी  कुछ  पता नहीं  था  ?

दूसरे  दिन  के  मंजर  ने  तो  मज़हर  के  दिमाग़  को  ही  जैसे  फ्रिज  बना  दिया  था।  शाम  के वक्त  घर  के  दरवाजे  से  जींस,  टी  शर्ट  और  स्पोर्टस  शूज  पहने  कोई  दाखिल  हुआ  और  बरामदे की  तरफ  जाते देख  मज़हर  जोर  से बोला  “अरे आप  कौन  और  ऐसे कैसे किसी  के घर  में…..।”

“हाँ,  बोलिये अब्बू।”

“नाजि……श”

थूक  गले  में  निगलते हुऐ  मज़हर  को चक्कर  सा  आने लगा। “हाँ,  अब्बू  कहिये कुछ  काम  है।”

नाज़नीन  ने  आकर  मजहर  को  संभाला  पानी  पिलाया  नाजिश  का  यह  रवैया  नाजनीन  को भी  समझ  नहीं  आ  रहा  था।  वह  भी  पशोपेश  में  थी।  समीर  भी  खामोश  था।  किसी  के  कुछ  समझ नहीं  आ  रहा  था।

थोड़ी  देर  बाद  नाजिश  वापिस  आई।  ज़रा  सी  खामोशी  के  बाद  नाजिश  अपने  अब्बू  से मुख़ातिब  थी।  “अब्बू  आप  भूल  गए  कि  होशियार  होना  अच्छी  बात  है  लेकिन  डेढ  होशियार  होना बहुत  बुरा  होता  है।  मेरी  खूबसूरत  टेलेन्टेड  अम्मी  ने हालात  से  समझौता  किया  लेकिन  आप  हमेशा कुंठित  रहे  और  कुंठा  हम  सब  पर  निकालते  रहे।  मेरी  मौसी  इनाया  जो  मेरी  अम्मी  से  भी  ज्यादा खूबसूरत  है  से  मोबाईल  पर  गन्दी  मजाक  करते  हो,  मुझे  मेरी  मौसी  ने  सब  बता  दिया  कि  वो पहले  तो  जीजा  साली  की  मजा़ क  समझ  रही  थी  और  आप  लगातार  अपनी  हदों  से  बाहर  जा  रहे थे।  उन्होंने  आपकी  पिछले  दिनों  की  सारी  बातें  रिकार्ड  कर  ली  है।”  कहकर  नाजिश  ने  अपने मोबाईल  का  स्पीकर  ऑन  कर  दिया।  मज़हर  की  गर्दन  झुकी  हुई  थी।  नाज़नीन  की  आंखें  पथराई हुई  थी, कमरे में मज़हर की आवाज़ थी। इनाया मज़हर  को उसकी  हरकतों के लिए टोक रही थी  और  मज़हर  इनाया  के  लिए  गाने  गा  रहा  था।  अश्लील  शब्दों  के  साथ  इनाया  के  हुस्न  की तारीफ  कर  रहा  था।  नाजिश  ने  रिकोर्डिंग  पूरी  सुनाने  की  बजाए  बीच  में  ही  स्विच  आॅफ  कर दिया  और  कमरे  से  बाहर  निकल  गई।  उसी  शाम  नाजिश  ने  म्यूजिक  क्लास  ज्वाईन  कर  ली। मजहर  जो हमेशा  चीखता  चिल्लाता  था  अब  एकदम बदल चुका  था।

जीवन  शान्त  प्रवाह  सा  चल  रहा  था।  आज  गायन  प्रतियोगिता  का  फाइनल  राउण्ड  था। टी.वी. के सामने सभी बैठे हुए थे। एंकर ने जब नाजिश के विजेता होने का ऐलान किया तो नाजनीन बेसाख्ता सबके सामने नाचने लगी। नाचते हुए ही टी.वी. के पास खुशी पर  नाजनीन  की  निगाह  पड़ी वहां नाजिश का हिजाब टंगा हुआ था। अजान की आवाज पर  नाजनीन  के पांव थम गए। टी.वी. की आवाज कम हो गई और मजहर टोपी उठाकर थके क़दमों से मस्जिद की और चल पड़ा।

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