झोपड़ी की आवाज़

राजेन्द्र जोशी

लेखक वरिष्ठ साहित्यकार है।

पता – नत्थुसर बास, बीकानेर

मैडम जी का फोन बजने लगेगा, उठ जा जल्दी से नहा धोकर खड़ी होए देर हो जाएगी। मैडम जी नाराज होगी। मां बस पांच मिनट और सो लेने दो न। कौनसी दूर है वो सामने ही बने है बंगले।

बेटी निशा अब तो उठ जाए देख सूरज तपने लगा है। यह और तेज तपेगाए फिर तू कहोगी सारा बदन भीगो देता है सूरज।

यह भगोने में रखी चाय तेरे लिए हैए कल की तरह जल्दबाजी में छोडक़र मत जाना। मां ने कहा।

एक ही घूंट में चाय पीती निशा कहने लगी . मां आज हम समुद्र पर चलेंगे। मैं बंगले वाली मैडम जी को सिंझ्या के लिए मना कर आऊंगी।

झोपड़ी से निकलते ही बंगले के रास्ते गुनगुनाते जाएंगे , भेलपूड़ी खाएंगे , मस्ती करेंगे। बंगले का दरवाजा खुला ही था।

ऐ छोरी आज फिर देरी सेघ् तुम झोपड़पट्टी वाले भी नए कितना ही समझा दो कुत्ते की पूछ की तरह सीधी नहीं हो सकती। मुन्ना की वैन आने वाली है। मेरे ऑफिस को देर हो रही है। साहब का लंच तैयार करना है। मैडम गुस्सा करते हुए कहने लगी। महारानी को कितना ही समझा दो। पगार देने में एक दिन की देरी तो क्या सुबह से शाम भी नहीं मानती।  काम करने को एक घंटा कभी एक्सट्रा कह दो मौत आती है।

बंगले के बाहर वैन हॉर्न बजा रही है मुन्ना

मुन्ना भी निशा की गोद में ही जाएगा। मां के साथ भी नहीं।

ऐ छोरी कान में रूई डाल रखी है क्या मुन्ना को लेकर क्यों नहीं जाती।

निशा ने मुस्कराते हुए मुन्ना को उठाया। बैग-पानी की बोतल लेकर गोद में चढ़ते ही मुन्ना ने निशा को प्यार किया। निशा ने मुन्ना को पुच्ची करी और अपनी मम्मी की तरफ बिना देखे ही निशा को बॉय कर वैन में अपनी सीट पर जम गया।

मैडम जी आज चुप ही नहीं हो रही थी। भोर से ही सारा काम खुद को करना पड़ रहा था न। ऊपर से यह मुन्ना किस भी पुच्ची भी केवल निशा को ही करता है।

देख छोरी! अब मुन्ना के आने से पहले.पहले सारा काम निपटा लेना। ऐसा नहीं हो कि हमारे जाने के बाद महारानी की तरह सोफे पर पसर कर टीवी देखती रहे।

भीतर से भरी निशा अचानक बोल पड़ी – देखो मैडम जी आप हमारा नाम नहीं जानती क्याआप बार -बार हमको छोरी -छोरी क्यों बुलाती हो। हमारा नाम निशा है। ना हम महारानी हैं और न ही बिना नाम की छोरी है। निशा बोलने का हमें मैडम जी।

जबान मत लड़ा मैं तुम्हारी काकी को शिकायत करूंगी। तुम्हारी काकी जब हमारे यहां काम करती थी तो उनसे हमें कोई शिकायत नहीं थी। टेम पर आती थीए कभी जाने की जिद नहीं करती।

मैडम जी हम कितना काम करती हैं। आपका पूरा बंगला , मुन्ना , रसोई का काम , घर की साफ -सफाई सब कुछ हम ही तो करती है। आपके पड़ौस वाली आंटी को भी हमने मना कर दिया। हम केवल आपके यहां काम करेगी।

क्यों किया! 

काकी के कहने पर। फिर भी मैडम जी आप हमको हर टेम डांटती रहती है।

मैडम जी आपको क्या बताएं आप कभी हमारी झोपड़ी के बाहर वाले मांचे पर सोयी नहीं। सुबह -सुबह इतनी मस्त वाली ठंडी हवा चलती है न इसलिए थोड़ा उठने में देर हो जाती है।

आप हमको ऐसे रोज -रोज डांटोगी तो हम खुद ही काकी को मना कर देंगे। हम नहीं आएंगे आपके बंगले पर। नहीं करना हमें काम।

ऑफिस जा रही मैडम का सारा गुस्सा बैठ गया।

अरे निशाए तुम तो बुरा मान गयी। तुम्हारी काकी में और मुझमें क्या फर्क है। भीतर से हिल गयी मैम साहब। कहीं सच में न आयी तो मैं तो कल ही बिस्तर पकड़ बैठूंगी।

निशा के सिर पर हाथ फेरते हुए – देखो, निशा तुम्हारे बिना मुन्ना तो स्कूल ही नहीं जाएगा। साहब को तो मेरी बनाई रोटी कहां पसंद आती है।  तेरे हाथ की रोटी के अलावा किसी और के हाथों से बनी रोटी खाते भी नहीं।

मैं तो अपनी समझ कर कहती हूं। तुम तो हमारे घर की सदस्य हो।

नहीं, मैडम जी हम कल से नहीं आएंगी। बस आज आपके आने तक काम करूंगी।

मैडम जी के आते ही अपनी लम्बी चोटी लहराती निशा हम जा रही हैं।

बेटी निशा मैं कब से तुम्हारी राह देख रही हूं। मैं तो अपने हिस्से का काम करके आ गयी। समुद्र नहीं चलना क्याए देखो काकी भी आज जल्दी आ गयी। बसंती कहने लगी , अब तो फटाफट तैयार हो जा समुद्र पर चलना है न।

मां अब कोई जल्दी नहीं। हम कल से मैडम जी के बंगले पर नहीं जाएगी।

काकी बोल पड़ी, अरे निशा तुमने ऐसा क्यों कियाघ् मैडम जी ने तुम्हें कुछ भला बुरा कहा।

नहीं काकी, मैडम जी हमें ठीक से ठंडी.ठंडी मस्त वाली हवा लेने से मना करती है। वो कौन होती है हमारी हवा रोकने वालीए काकी हम साफ कह देते हैं हमारे ठाकुर जी की दी जा रही हवा है। बड़े लोगों की गिरफ्त में नहीं है हवाए वो तो एसी की हवा लेती है तो हमने तो कभी उनको मना नहीं किया।

ऐसा क्या हुआ निशा, मैं कल तुम्हारे साथ चलूंगी तुम्हें भी एसी में बिठा दूंगी।

हमें उनकी एसी में नहीं बैठना। हम सुबह ठंडी -ठंडी मस्त वाली हवा में सोती हैं। उठने में थोड़ी देर क्या हो गयी। दिनभर हमको डांटती रहती है। हमारा माथा खराब कर दिया इस बगले वाली मैडम जी ने तो। एक तो दिन भर काम करो। वो घुमने जाए तो मुन्ना को रखो। 

काकी हमने पैदा नहीं किया मुन्ना को। हम नहीं सुनेंगे उन ऊंचे बंगलों की डांट -फटकार। हम हमारी छोटी झोपड़ी में मस्त हैं।

काकी -निशा की बहस में बसंती कहने लगी, कल काकी तुम्हारे साथ चलेगी।

कह दिया न मांए अब हम उन ऊंची-ऊंची हवेलियों में नहीं जाएंगी। हमें उनमें अहंकार की बू आती है। हम कल से कॉलेज पढऩे जाएगी। खुद मैडम बनेगी। हम अपना बड़ा घर बनाएंगी।

हमको कोई नहीं कहेगा किसी के घर में काम करने के लिए,  हमारी कॉलेज की मैडम ने पिछले बरस कहा था कि तुम्हारे बापू को प्रिंसिपल सर के पास भेजो तुम्हारी फीस नहीं लगेगी, किताबें भी मिल जाएगी। मां तुम हमें हमारे पिताजी के बारे में बताती क्यों नहीं। बताओ कहां है उनको कह दीजिए एक दिन के लिए आ जाये, सर से मिलने के लिए।

कह दिया न तुम्हें वह नहीं आ सकते। आज बसंती का गुस्सा सातवे आसमान पर था। चली जाना सुबह काम पर।

हमने भी जो फैसला ले लिया तो पीछे नहीं हटेगी। हम खुद सर से बात करेगी।

रात भर सो नहीं सकी निशाए कॉलेज और मैडम के बीच में नींद झूलती रही। अकेली पहुंच गयी कॉलेज सुबह-सुबह।

सर हमें कॉलेज में पढऩा है। हमारे पिताजी नहीं आ सकते इसलिए हम खुद आपके पास आई हैं। आप हमको एडमिशन दे दीजिए। हम काम नहीं करेगी। निशा नाम है मेरा सर।

ठीक है निशा हम तुमको एडमिशन दे देते हैं। जब भी तुम्हारे पिताजी आ जाएं ले आना उनको।

वह कहां आने वाले हैं सर। हमने तो कभी पिता को देखा तक नहीं। कैसे होते हैं पिता। मां की दिलासा भी अब तो झूठी लगती है। मां भी कभी कॉलेज नहीं आएगी। आप हमको कॉलेज से निकालना नहीं। हम काम करते-करते थके नहीं लेकिन ऊब चुके हैं हमें पढऩा हैं सर।

क्या हुआ, जाओ ऑफिस में जाकर यह फार्म दे दो। सर ने कहा।

निशा प्रिंसीपल सर के कमरे से थोड़ी ही आगे बढ़ी थी। सामने गेट के पास उसने हवेली वाली मैडम जी को जाते देख लिया। यहां क्यों आयी मैडम जी कहीं काकी ने तो नहीं भेजा। वह सोचने लगी।

तेज कदम बढ़ाते हुए ऑफिस पहुंच में फार्म जमा करवा कर रसीद जेब में डालते हुए उसने कॉमन रूम में शीतल मैडम को सारी हकीकत बता दी।

निशा कल से ही तुम क्लास में बैठ जानाए शीतल मैडम कहने लगी। तुमने उन बंगलों के झूठे बरतन साफ करने में पहले ही एक साल बेकार कर दिया। तुम्हारी सहेली कमला तुमसे एक क्लास आगे बढ़ गयी।

अब तुम्हें कॉलेज से कोई नहीं निकाल सकता। मन लगाकर पढ़ो। पहले टेस्ट में अच्छे नम्बर लाओ तो सरकार तुम्हें वजीफा भी देगी जिससे तुम्हारे कपड़े और खाने-पीने की व्यवस्था आसानी से हो जाएगी।

शीतल मैडम आप कितनी अच्छी है। अच्छा प्रणाम, हम कल से बराबर कॉलेज आएगी।

देखो न काकी, किसी तरह निशा को कॉलेज छुड़वाकर फिर से काम पर भेजना होगा। निशा आपकी बात मानती है। मैडम काकी को कह रही थी। मेरी भूल रही कि मैंने इसको झुग्गी की छोरियो के साथ स्कूल भेजा न भेजती तो बात यहां तक कभी नहीं आती। काकी भी उनका साथ देती कह रही थी।

क्या बताऊं बसंती। मैडम जी कह रही थी मैंने तो इसको अपना समझकर छोरी कह दिया तो लडऩे लगी। निशा को तो जल्दी आने का बोला था जिसमें ही लडऩे लगी।

तेरी बेटी के पर कतरने पड़ेंगे नहीं तो हमारे हाथ से निकल जाएगी। कॉलेज के छोरे छोरियों की हवा लगने के बाद वह हमरी नहीं रहेगी। वैसे भी मैडम जी बता रही थी कि दिनभर सोफे पर पसर जाती है फिल्में देखती रहती है, झोपड़ी से बंगले तक आते.जाते छोरों के साथ खिल.खिल करती रहती है। काकी बसंती को उल्टी पट्टी पढ़ाने लगी।

कॉलेज से आज कमला के साथ उसके घर जाऊंगी मां। मुझे आने में देर होगी। चिंता नहीं करना। चोटी करती हुई निशा मां से कहने लगी। कमला और कमला की मम्मी कितने दिनों से मुझे बुला रही थी।

जब तेरी इच्छा हो तब घर आना। तू हमारी बात तो मानती नहीं। मां लाल पीली हुई। हमें क्या पता कि तू कहां जा रही है, क्या करोगी, क्या नहीं करेगी,

निशा ने आपा नहीं खोया।

कहीं नहीं जाऊंगी मेरी मां। पढूंगी और बढूंगी। मेरी प्यारी मां मैं आप पर बोझ नहीं बनना चाहती। अगले तीन महीने बाद तुमसे एक रुपया भी नहीं मागूंगी। बस का भाड़ाए कपड़ों का खर्चा और कॉपी किताबों की व्यवस्था खुद पढ़ लिख कर करूंगी। अभी चलती हूं। मां मुझे आशीर्वाद दे दो। मेरा पहला दिन है आज कॉलेज में।

दुखी मन से बेटी के माथे पर हाथ फेरती मां खुद में ही खो गयी। पता नहीं यह पहला दिन है या आखिरी। यहां काम करती थी तो आंखों के सामने रहती थी। इस महानगर की भीड़ में कहां डूबकी लगाने जा रही है। उसे याद आया कि मरने के बाद नानी के घर की झोपड़ी मे कितने ही लोगों ने मुझे नचाया था। यह तो भला हो काकी का जिसने अपने साथ रखा। काकी के बच्चा नहीं हो रहा था। काकी का घरवाला कभी-कभी घर आता तो काकी के साथ न सोकर मेरे साथ सोता और रोज सौ रुपये देता। बाद में पता चला की काकी भी उसकी रखैल ही है। अकेली मां हूं बाप कोई एक हो तो बताऊं इसे! मां के पदचिन्ह पर न चली जाए।

मांए मां मेरा सिर छोड़ो तो कॉलेज जाना है। कहां खो गई निशा मां को झिंझोड़ती बोली।

कॉलेज में होने वाले प्रत्येक कार्यक्रम में अब तो पहला स्थान तेरे नाम बुक हो गया है निशा। डांस, डिबेट, गायन साथ ही पढ़ाई में भी। शीतल मैडम निशा को कह रही थी।

मैडम यह सब आपके आशीर्वाद से ही संभव हुआ है नहीं तो उन सामंती लोगों की डांट फटकार और ऊपर से अहसान में ही जिंदगी निकल जाती।

कमला कहने लगी मैडम निशा न होती तो कॉलेज के लडक़े लोग किसी कॉपीटीशन में हाथ ही नहीं रखने देते थे। भला हो इस निशा का जो देर आये दुरस्त आये। कॉलेज में आ गई।

कॉलेज में यह अंतिम वर्ष था। अब तक विश्वविद्यालय स्तर पर निशा अव्वल रही थी। आज अंतिम परिणाम आना है लेकिन परिणाम के बारे में निशा को कोई चिंता नहीं है। 

कहते हैं न कुत्ते की दुम कितनी ही सीधी करो परंतु वह टेढी ही रहती है। वहीं स्थिति काकी की थी। मलार की झोपड़पट्टी में रहने वाला रमेश रेडलाइट एरिया में मैनेजर था। काकी का मुंह बोला भतीजा। देखो काकी आप जितना कहोगी उतना रुपया मैं निशा की मां को और आपको अलग दूंगाए बस आप तो मेरी शादी निशा से करवा दीजिए।

देख रमेश परसों निशा का रिजल्ट आना है। मैं उसकी मां से बात करूंगी। काली माई ने चाहा तो उसी दिन तेरी गोटी फिट करा दूंगी। कुछ पैसे तो एडवांस के अभी दे दे।

काकी कहां हो। कितनी देर से तुम्हें ढूंढ रही हूं। बोल बसंती क्या बात हैए तुम इतनी उदास क्यों हो। कुछ नहीं काकी निशा की पढ़ाई पूरी होने वाली है। मेरी बेटी के लिए कोई अच्छा सा लडक़ा मिल जाए तो हाथ पीले कर दूं।

सोने में सुहागा हो गया। अरे बसंती मेरे ध्यान में है एक लडक़ा जो निशा की कॉलेज में पढ़ता है। बहुत अच्छा लडक़ा हैए पढ़ाई के साथ.साथ नौकरी भी करता है। उसका नाम रमेश है। परसों उसका और निशा का रिजल्ट आना है उसी दिन अच्छा काम हो जाए परंतु बसंती एक बार निशा को भी पूछ लेना चाहिए।

हां काकी, लेकिन उसे क्या पूछना है

बाहर खड़ी निशा और सहेली कमला ने सब कुछ सुन लिया था। मां काकी ठीक कहती है मुझे भी पूछ लेना।

हां बेटीए निशु मैंने तो तेरी मां से कह दिया निशा मना नहीं करेगी फिर भी पूछना ठीक होगा।

निशा और कमला ने एक -दूसरे को आंख मारी। 

हां तो काकी तुम्हारी नजर में रमेश बहुत अच्छा लडक़ा है न।

हां बेटीए निशा हम तेरे भले की बात सोचेंगे। बुरा क्यों सोचेंगे , कमाता खाता लडक़ा है। भगवान का दिया सब कुछ है उसके पास। लो आ ही गया रमेश भी।

निशा और कमला ने रमेश का स्वागत किया झोपड़ी में लाकर बिठाया।

निशा बोलने लगी रमेश मैं तुम्हें पसंद हूं

हां निशा मैं तुमसे बेहद प्यार करता हूं। तुमसे शादी करना चाहता हूं।

कमला बीच में ही बोल पड़ी . रमेश निशा की सुहागरात कहां होगी।

जहां निशा कहेगी।

अच्छा रमेश एक बात बताओ तुम मेरे अलावा कितनी लड़कियों से शादी रचा चुके हो।

नहीं, नहीं किसी से नहीं निशा तुम्हारी कसम।

काकी को कितने रुपये देने की हां भरी हैए मुझसे शादी कराने के लिए।

उस रेडलाइट एरिया में काकी तुमसे मिलने कितनी बार आयी,

वो सामंती बंगले वाली मैडम जो हमारी कॉलेज में है उनसे मेरा अहंकार उतारने का सौदा कितने में हुआ

रमेश को काटो तो खून नहीं वाली कहावत होने लगी। परंतु रमेश भी रेडलाइट एरिया का खिलाड़ी था। उसने जेब से पिस्तौल निकाली और शादी का स्टाम्प सामने रख दिया।

इस पर साइन करो निशा नहीं तो उठा कर ले जाऊंगा। रमेश धमकाता बोला।

निशा भी समझदार कम नहीं थी। वह बोलीए करती हूं लेकिन इस खिलौने को तो जेब में रखो। 

मैं तो खुद तुम्हें पसंद करती हूं परंतु तुम्हारे मेरे बीच में रुपयों का लेन -देन और काकी की क्या जरूरत है लाओ बताओ कहां साइन करने हैं।

रमेश ने स्टाम्प आगे कर दिया।

निशा ने स्टाम्प हाथ में लिया और जोर से ताली बजायी। अचानक पुलिस रमेश को गिरफ्तार कर लिया।

डीसीपी साहब काकी के पास एडवांस जमा है। निश बोली।

रमेश और काकी सलाखें के पीछे बंद हो गए।

निशा अपनी मां के आंसु पौंछती कहने लगी –  मैंने सब कुछ सुन लिया था। समझ लिया। तुम मुझे पापा नहीं दे पाओगीए लेकिन अब तुम बनी उस सामंतशाही की चौखट भी नहीं चढ़ोगी। जहां काकी हमको भेजती रही है।

उस मैडम की कार्य योजना के तहत रमेश को तैयार किया गया, वह अपने घर पर काम करवाने के लिए हम पर हुक्म चलाना चाहती है। जब से मैंने मैडम को मना किया था। उसी दिन से उसने यह छिछोरा काम प्रारंभ कर दिया थाए तुम भोली हो , तुम नहीं जानती मां।

कमला से रहा नहीं गया। आंटी जी निशा का पीएचडी में एडमिशन हो गया है। निशा कॉलेज में मैडम बनेगी। तब तक निशा को बीस हजार रुपये महीना वजीफा मिलता रहेगा।

निशा ने मां को गले से लगा लिया। यह झोपड़ी की आवाज़ है।

en_USEnglish